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आँखों के चिड़ियाघर में सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं …

मेरी अभिव्यक्ति
मेरी अभिव्यक्ति
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आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं.
कभी प्रेम तरुनाई में
हाथ मसल कर रह जाते हैं.
कभी ज्ञान की गंगा में
हम गोते खाते मर जाते हैं.
आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं.
कभी रोज़ी-रोजगार के भंवर में
ज्ञानी जन रिश्वत के फंदे चढ़कर मर जाते हैं.
कभी अदालत में जज के सम्मुख
न्यायी जन चीख चीख कर मर जाते हैं.
आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं.
कभी किसी बच्ची के पट
अश्मत ढकते ढकते छिन जाते हैं.
आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं.
करें कभी विश्वाश किसी का
तो हम प्रतिघात सहन कर मर जाते हैं.
अरमानो के आंसू सब
सांसो में सिसक सिसक कर मर जाते हैं.
आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़प कर मर जाते हैं.
कभी शहीद विधवाओं के
भूखे बच्चे बिलख बिलख कर मर जाते हैं.
‘विनय’ हम कवि कभी यूँ ही
ये सब हालात सोचकर मर जाते हैं.
आँखों के चिड़ियाघर में
सब ख्वाब तड़पकर मर जाते हैं.

विनय राज मिश्र ‘कविराज’

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